Tuesday, December 23, 2008

जो मैं एक संवेदनशील इंसान हूँ


जब न किसीको समझा पाती और न ख़ुद समझ पाती
सबकी शिकायतो का केन्द्र बस मैं ही बन जाती
अपनी सोच है मेरी भी और अपने एहसास भी
क्यों भूल जाते हैं सब हूँ तो एक इंसान ही

भावनाओ के सागर में कश्ती मेरी हिचकोले खाती
तूफानों में कभी तैरती तो कभी डूब जाती
कभी तूफ़ान को बाँधने की कोशिश कामयाब रहती
तो कभी तूफान को इन आंखों से छलकते पाती

जानती हूँ की वो सिर्फ़ कुछ बूँद पानी की ही हैं
जो न वक्त देखता हैं न उसकी कोई मंजिल हैं
जानती हूँ वो बूँद दुनिया के लिए तो बेमानी है
पर मुझे जता जाती की कहीं कुछ आज भी जिंदा हैं

सबकी तरह कुछ इछाये मेरे मन में भी पनपती हैं
सबकी तरह कुछ अपेक्षाए मेरी भी अपनों से होती हैं
नही आसान मेरे लिए अपने हाथो से उनका दम घोट देना
ये और बात की गुजरते वक्त के साथ उनका यू अन्तिम साँस लेना

न किसी पे कोई तोहमत न किसी से मैं नाराज़ हूँ
पर क्या मैं ही ग़लत हूँ और क्या मैं इसकी कसूरवार हूँ
न जानती हूँ और न किसी को दोष देना चाहती हूँ
मैं क्या करू जो मैं एक संवेदनशील इंसान हूँ