Saturday, November 27, 2010

हाल दिल का.....

हाथ में मैं जो कागज़ कलम लेके
दिल का हाल उसपे जो लिखने बैठी
शब्दों का एक भी जोड़ा बना न पाई
ख्याल मनके कागज़ पर उतार न पाई

घडी की सुइयों का ये आँखे पीछा करती हैं
दरवाज़े पे उस दस्तक का ये दिल राह देखती हैं
कल्पनाओ के आकाश में नयी उमंगें उठती हैं
भावनाओ के सागर में नित नयी तरंगे बनती हैं

लाख कोशिशे करने पर भी भूझ न पाई
दिल की ये हालत को मैं क्यों समझ न पाई
ये वक़्त न कटता और न अब गुज़रता हैं
दिल न आगे बढ़ता हैं और न ढलता हैं

क्या राज़ इसका कोई जानता हैं
हाल दिल का कोई दिल समझता हैं
बुझे कोई तो मुझे भी कुछ बतलाये
चंचल मन को , उसकी मंजिल तक ले जाये

Saturday, September 4, 2010

तलाश करोगे तो कोई मिल ही जायेगा,
पर कौन है जो आपको मेरी तरह चाहेगा
देखता होगा आपको कोई चाहत की नज़रों से,
पर वो हमारी नज़र कहाँ से लायेगा..

कुछ शब्द पर बड़ी कहानी..

शब्दों में छुपे उन कुछ शब्दों को तलाशती हूँ
बारिश की गिरती बूंदों में तेरे चेहरे को तलाशती हूँ
राहो में अक्सर उस इंतज़ार को तलाशती हूँ
तलाश में हूँ और अपने आप को तलाशती हूँ..

Sunday, April 4, 2010

ये सब इतना बिखरा सा क्यों हैं

क्या अर्थ होता है जीवन का
क्या मायने होते हैं सपनो के

वीरान राहों में ना होती अब कोई पदचाप हैं
दरवाजो में भी अब तो जंग के निशान हैं
छोटी सी आहट से भी मन बेचैन हो उठता हैं
हर बार कि तरह फिर ये दिल गलती कर बैठता हैं

मन न किसी हिसाब का मोहताज होता हैं
क्या मिला क्या खोया इसका न अंदाज़ हैं
छोटे छोटे सपने अक्सर बुना करता हैं
और फिर उन्ही तानो बानो में उलझ जाता हैं

ज़ख्म कितना भी गहरा क्यों न हो
सुना हैं कि वक़्त के साथ भर ही जाता हैं
दर्द कम हो जाता हैं और न भी हो तो क्या
सहने कि आदत जो इस बेचारे को हो ही जाती हैं

पर ये सवाल हर वक़्त कचोटता हैं
दिन रात बार बार कानो में गूंजता हैं
पूछता हैं कि सब कुछ इतना अधुरा क्यों हैं
ये सब इतना बिखरा सा क्यों हैं