Sunday, April 4, 2010

ये सब इतना बिखरा सा क्यों हैं

क्या अर्थ होता है जीवन का
क्या मायने होते हैं सपनो के

वीरान राहों में ना होती अब कोई पदचाप हैं
दरवाजो में भी अब तो जंग के निशान हैं
छोटी सी आहट से भी मन बेचैन हो उठता हैं
हर बार कि तरह फिर ये दिल गलती कर बैठता हैं

मन न किसी हिसाब का मोहताज होता हैं
क्या मिला क्या खोया इसका न अंदाज़ हैं
छोटे छोटे सपने अक्सर बुना करता हैं
और फिर उन्ही तानो बानो में उलझ जाता हैं

ज़ख्म कितना भी गहरा क्यों न हो
सुना हैं कि वक़्त के साथ भर ही जाता हैं
दर्द कम हो जाता हैं और न भी हो तो क्या
सहने कि आदत जो इस बेचारे को हो ही जाती हैं

पर ये सवाल हर वक़्त कचोटता हैं
दिन रात बार बार कानो में गूंजता हैं
पूछता हैं कि सब कुछ इतना अधुरा क्यों हैं
ये सब इतना बिखरा सा क्यों हैं

2 comments:

Pallavi Kishore said...

bhohot kubb..lekin itna udas udas kyu likh rahi ho.. thoda kuch romatic ya man bhawan aais bhi likho.

मीत said...

der se padhne ke liye sory...
par bahut achi lagi..
likhti rahiye...
meet