Monday, September 14, 2009

बस....क्योकि...

जाने क्या चाहता हैं मन मेरा
जाने क्या मांगता हैं दिल मेरा

नही जानती किस राह बढ रही हूँ
नही जानती किस दिशा जा रही हूँ
चल रही हूँ बस ,क्योकि चलना हैं
निभा रही हूँ बस,क्योकि निभाना हैं

सब कुछ इतना धुंधला सा क्यों हैं
मेरा दम इतना घुटता सा क्यों हैं
इतने सवालो में उलझा जीवन क्यों हैं
हर एक पल इतना कचोटता क्यों हैं

न आज का पता , न कल की ख़बर हैं
न दिन पर , न रात पर अब नज़र हैं

5 comments:

ओम आर्य said...

chand panktiyo me bahut kuchh kah gayi aapaki yah rachana.....atisundar

मीत said...

बेहद सुंदर अभिव्यक्ति...
जल्दी जल्दी लिखा करो...
अनवरत जारी रहे...
मीत

Sanjay Gaur said...

I always enjoy your composition. I commend you for your excellent writing. I look forward to reading your next work. Thank you.

amitsinha said...

this blog rekindled my interest for hindi sahitya..I have been born and brought up with books of premchand, sharatchand, and my all time prose "Madhushala"..
nice poem
rgds
amit

tooku's space said...

amazing composition..Nimish..

Keep it up!!!!!

Cheers,
Yogita