Sunday, April 19, 2009

सब समझे भी तो क्या हैं...

तुम्ही न समझ पाए कीमत
मेरी कविताओ की
मेरी भावनाओ की
सब समझे भी तो क्या हैं

शब्दों में लिखकर मैंने दिए कुछ मौन निमंत्रण
तुम पढ़ न पाए या शायद पढ़ना भी न चाहा
चाहा चित्रित कर दूँ अपने भावो को इनमे
तुम्हे ही टुकरा दिया जब इन अर्थो को
सब समझे भी तो क्या हैं

कोशिश लाख की तुमको समझने
और फिर तुमको समझाने की
लेकिन नाकाम हुई मेरी सारी बातें
व्यर्थ गई तेरी मेरी वो सब रातें
वही को , किया जो दर्द देता था
लौट के वही आकर रुके जहाँ से चले थे
तुमने ही जब नकार दिया मेरे अस्तित्व को
सब समझे भी तो क्या हैं

यह मेरी चाहत थी या कोई पागलपन
की मैंने ढूढा तुममे अपनापन
चाहा था लाख भरना फिर भी
रह गया यूँही खाली मेरा दामन
जब तुमने ही न पहचाना
मेरे इस अकेलेपन को
सब समझे भी तो क्या हैं

Friday, April 10, 2009

प्रश्नचिन्ह,मिटाऊँ कैसे

अपने चेहरे से तेरी परछाई हटाॐ कैसे
तुम जो चाहते हो अब वो रंग लाऊं कैसे
अपने प्यार को छुपाऊ तो छुपाऊ कैसे
जैसे तुम चाहते हो वैसे बन जाऊ कैसे

जानती हूँ ज़िन्दगी के हर मोड़ पे मैंने
बहुत गलतिंयां की हैं , उन सब को सुधारूँ कैसे
जाने अनजाने तुम्हारे दिल को चोट दी हैं
उस बोझ में दबे दिल में अब दिये ज़लाऊ कैसे

मैंने भी यूँ तो कई ख्वाब सजाये थे
और अब उन टूटे ख्वाबो को जोडूँ कैसे
तेरी आंखों में धुन्ध्ली होती अपनी तस्वीर में
नए नए रंग भरने के लिए लाॐ कैसे

इतनी दूर तक साथ चली बस तेरे,
अब अपने रस्ते को अकेले खोजू कैसे
मंजिल भी मेरी तेरे आस पास ही थी कहीं
अब ख़ुद नई मंजिल तलाशूँ कैसे

जो हुआ वो तो वक्त के साथ मिट जाएगा
मेरे अश्को के साथ ही बह जाएगा
पर मेरी ज़िन्दगी में जो लगा हैं
एक प्रश्नचिन्ह, अब उसको मिटाऊँ कैसे

Thursday, April 9, 2009

रौशनी से अंधकार अच्छा है ..

सब कहते हैं की सवेरा सबसे अच्छा हैं
रौशनी का ही साथ सबसे सच्चा हैं
पर कैसा हैं ये सवेरा जो अंधकार करता हैं
आँख खुलते ही तन्हा होने का एहसास देता

मुंदी आंखों में एक विश्वास तो पलता हैं
कोई साथ हैं मेरे ये एहसास तो रहता हैं
पर ये सवेरा वो ब्रहम भी तोड़ देता हैं
और यथार्थ से मेरा नाता जोड़ जाता हैं

तेज़ धुप तन मन दोनों को झुल्साती जाती हैं
दूर दूर तक जहाँ भी ये नज़र जाती हैं
हर तरफ़ भीड़ ही भीड़ बस नज़र आती हैं
पास तो बहुत हैं पर साथ कोई भी नही
ये एहसास हर पल मुझे क्यों कराती हैं ?

रात कम से कम जख्मो को ठंडा तो कर देती हैं
अनेक तारो के बीच किसी अपने का चेहरा गद देती हैं
अपनी चादर में लपेटके, हवाओ से सर को सहलाती
और मेरी हर कहानी हर परेशानी मूक रहके सुन लेती हैं