अपने चेहरे से तेरी परछाई हटाॐ कैसे
तुम जो चाहते हो अब वो रंग लाऊं कैसे
अपने प्यार को छुपाऊ तो छुपाऊ कैसे
जैसे तुम चाहते हो वैसे बन जाऊ कैसे
जानती हूँ ज़िन्दगी के हर मोड़ पे मैंने
बहुत गलतिंयां की हैं , उन सब को सुधारूँ कैसे
जाने अनजाने तुम्हारे दिल को चोट दी हैं
उस बोझ में दबे दिल में अब दिये ज़लाऊ कैसे
मैंने भी यूँ तो कई ख्वाब सजाये थे
और अब उन टूटे ख्वाबो को जोडूँ कैसे
तेरी आंखों में धुन्ध्ली होती अपनी तस्वीर में
नए नए रंग भरने के लिए लाॐ कैसे
इतनी दूर तक साथ चली बस तेरे,
अब अपने रस्ते को अकेले खोजू कैसे
मंजिल भी मेरी तेरे आस पास ही थी कहीं
अब ख़ुद नई मंजिल तलाशूँ कैसे
जो हुआ वो तो वक्त के साथ मिट जाएगा
मेरे अश्को के साथ ही बह जाएगा
पर मेरी ज़िन्दगी में जो लगा हैं
एक प्रश्नचिन्ह, अब उसको मिटाऊँ कैसे
6 comments:
बेहद मर्मस्पर्शी लिखा है आपने ...ख़ास तौर पर इस रिश्ते और होते हुए प्रश्नों को बखूबी भाव दिए हैं आपने ...सच प्यार का रिश्ता यही तो है
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
bahut hi accha likha hai...dil ki ghrai se awaz aa rahi hai..
nimish i am very much impressed, it stuck on my heart.Bahut hi acha likha hai.sacha payar isi ko kahte hain.
Nishchint
nimish mere dil ko choo liya tune
nishchint
इतनी दूर तक साथ चली बस तेरे,
अब अपने रस्ते को अकेले खोजू कैसे
मंजिल भी मेरी तेरे आस पास ही थी कहीं
अब ख़ुद नई मंजिल तलाशूँ कैसे
बहुत खूबसूरत... बेहद पसंद आयी...
जारी रहे...
मीत
વાહ, સુંદર કવિતા છે.
વાસ્તવિક જીવનના બધા ચિત્રોનુ શબ્દાનુલેખન પ્રસંસનીય છે.
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