Thursday, April 9, 2009

रौशनी से अंधकार अच्छा है ..

सब कहते हैं की सवेरा सबसे अच्छा हैं
रौशनी का ही साथ सबसे सच्चा हैं
पर कैसा हैं ये सवेरा जो अंधकार करता हैं
आँख खुलते ही तन्हा होने का एहसास देता

मुंदी आंखों में एक विश्वास तो पलता हैं
कोई साथ हैं मेरे ये एहसास तो रहता हैं
पर ये सवेरा वो ब्रहम भी तोड़ देता हैं
और यथार्थ से मेरा नाता जोड़ जाता हैं

तेज़ धुप तन मन दोनों को झुल्साती जाती हैं
दूर दूर तक जहाँ भी ये नज़र जाती हैं
हर तरफ़ भीड़ ही भीड़ बस नज़र आती हैं
पास तो बहुत हैं पर साथ कोई भी नही
ये एहसास हर पल मुझे क्यों कराती हैं ?

रात कम से कम जख्मो को ठंडा तो कर देती हैं
अनेक तारो के बीच किसी अपने का चेहरा गद देती हैं
अपनी चादर में लपेटके, हवाओ से सर को सहलाती
और मेरी हर कहानी हर परेशानी मूक रहके सुन लेती हैं

2 comments:

मीत said...

सुंदर अभिव्यक्ति...
बेहद सुंदर भाव और साथ में सुंदर शब्द...
ऐसा लगता है जैसे की मेरे ही दिल का हाल लिख दिया...
बहुत सुंदर...
मीत

अनिल कान्त said...

कभी कभी इंसान प्यार के रिश्ते में यूँ उलझा हुआ होता है कि अँधेरा भी उजाले से बेहतर लगने लगता है ....शायद हम सोचते हैं कि अँधेरे में कम से कम ख्वाब तो देख सकेंगे

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति