दिल का हाल उसपे जो लिखने बैठी
शब्दों का एक भी जोड़ा बना न पाई
ख्याल मनके कागज़ पर उतार न पाई
घडी की सुइयों का ये आँखे पीछा करती हैं
दरवाज़े पे उस दस्तक का ये दिल राह देखती हैं
कल्पनाओ के आकाश में नयी उमंगें उठती हैं
भावनाओ के सागर में नित नयी तरंगे बनती हैं
लाख कोशिशे करने पर भी भूझ न पाई
दिल की ये हालत को मैं क्यों समझ न पाई
ये वक़्त न कटता और न अब गुज़रता हैं
दिल न आगे बढ़ता हैं और न ढलता हैं
क्या राज़ इसका कोई जानता हैं
हाल दिल का कोई दिल समझता हैं
बुझे कोई तो मुझे भी कुछ बतलाये
चंचल मन को , उसकी मंजिल तक ले जाये