Sunday, June 7, 2020

हैं रहस्य बहुत बस आज कुछ मैं खोल रहा हूँ..

मैं सन्नाटा हूँ फिर भी बोल रहा हूँ
मैं शांत हूँ बहुत फिर भी डोल रहा हूँ
ये हँसी और ये सिसकी, सब मेरी ही है
हैं रहस्य बहुत बस आज कुछ मैं खोल रहा हूँ

साथ हूँ मैं सबके पर मैं खुद अकेला घूम रहा हूँ
खामोश हूँ पर अपनी ही एक कहानी कह रहा हूँ
उजाड़ा जो वक़्त ने कभी उसको आज बसा रहा हूँ
हैं रहस्य बहुत बस आज कुछ मैं खोल रहा हूँ

हैं अंधेरा घना फिर भी किसीका उजाला ढूंढ रहा हूँ 
गाँठ जो बनी हैं दिलों मे ,उसको कोशिश कर खोल रहा हूँ 
युहीं शब्दों को जोड़ कर नयी कवितां क़ह रहा हूँ 
हैं रहस्य बहुत बस आज कुछ मैं खोल रहा हूँ