यूँ तो कभी यादो का मौसम नही जाता
पर बीती बातों का सावन भी नही रहता
गुजरी रातों का कोइ हिसाब नही होता
कुछ राहगीरों को कभी मुकाम नही मिलता
किसी को क्या कहे , ये तो खुद कि किस्मत है
सब कहते कि है सब इन लकीरों कि बदौलत है
दुनिया तो मुझे ही गलत कहती है
तभी मुझको कभी बुत कभी पत्थर का नाम देती है
लोग को कहना है तो कह लेते है
शायद इसीलिए इस तरह अपनी बात सूना देते है
मेरी मुस्कुराहट को गलत समझ लेते है
मेरे गम को कम समझ लेते है
ये तो किसी से कभी किया एक वादा है
जिंदगी भर अब यूँही चलते जाने का इरादा है..
1 comment:
धन्यवाद
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