Tuesday, November 27, 2007

दुनिया

कौन समझ पाया है इस दुनिया को
हर किसी चेहरे पे परत है
किसे पे कम किसी पे ज्यादा
बस इतना ही फरक है

जो दिखता है वो होता नही है ?
जो होता है वो द्खिंता क्यों नही है ?
जो है दिल मे वही चहरे पे लिखा क्यों नही होता?
इस सवाल का जवाब भी किसी के पास क्यों नही मिलता ?

बार बार इसी पशोपेश मे हमे लाके खडा कर देता है
किसी और से क्या कहे ये तों अपना दिल है जो बार बार दगा देता है
ये नज़र है जो बार बार धोका खाती है

और हर बार सजा ये बेचारा दिल पता है ...

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