क्या तुमने कभी ये सोचा है
हम तुम क्यूँ मिले क्यूँ हम साथ चले
जब जब भी मैंने ये सोचा है
कोई भी जवाब सीधा सा नही मिला
तुम्हे खामोशी पसंद है और मुझे निरथर्क बातें करना
तुम यतार्थ में रहते और मैं अपनी बनायी दुनिया में
तुम दुनियादारी की बाते बाताते तो मैं भावनाओ के बाने बुनती
तुम सबकुछ बोलना जानते और मैं बातें दिल मैं रखना
तुम सब सुनना चाहेते और मैं बिन बताये समझाना
तुम हक़ जाताना समझाते और मैं जिम्मेदारी निभाना
तुम बस कल में टाला करते और मैं आज मैं चीजे निपटाती
तुम दुसरे कान से बात निकला करते और मैं फिर भी समझाती
तुम सुबह थे तो मैं शाम तुम पूरब थे तो मैं पश्चिम
फिर भी पहेचानते पहेचानते हम एक दुसरे को जान गए
फिर भी पहेचानते पहेचानते हम एक दुसरे को जान गए
न हमारी चाहते ऐक जैसी थी न हमारी सोच
न हमारी मंजिल ऐक जैसी थी और न हमारी हसरतें
फिर भी हम मिल गए और साथ चले
अलग अलग मंजिल के लिए अपने रास्ते एक किए