Friday, October 24, 2008

हम क्यूँ मिले


क्या तुमने कभी ये सोचा है

हम तुम क्यूँ मिले क्यूँ हम साथ चले

जब जब भी मैंने ये सोचा है

कोई भी जवाब सीधा सा नही मिला

तुम्हे खामोशी पसंद है और मुझे निरथर्क बातें करना

तुम यतार्थ में रहते और मैं अपनी बनायी दुनिया में

तुम दुनियादारी की बाते बाताते तो मैं भावनाओ के बाने बुनती

तुम सबकुछ बोलना जानते और मैं बातें दिल मैं रखना


तुम सब सुनना चाहेते और मैं बिन बताये समझाना

तुम हक़ जाताना समझाते और मैं जिम्मेदारी निभाना

तुम बस कल में टाला करते और मैं आज मैं चीजे निपटाती

तुम दुसरे कान से बात निकला करते और मैं फिर भी समझाती

तुम सुबह थे तो मैं शाम तुम पूरब थे तो मैं पश्चिम
फिर भी पहेचानते पहेचानते हम एक दुसरे को जान गए

न हमारी चाहते ऐक जैसी थी न हमारी सोच

न हमारी मंजिल ऐक जैसी थी और न हमारी हसरतें

फिर भी हम मिल गए और साथ चले

अलग अलग मंजिल के लिए अपने रास्ते एक किए

3 comments:

मीत said...

बहुत अच्छा लिखा है...
ऐसा लगता है की जैसे गुज़रे लम्हों को एक डोरी में पिरो दिया है...
बहुत सुंदर...
touch my heart....
keep it up

मीत said...

न हमारी मंजिल ऐक जैसी थी और न हमारी हसरतें
फिर भी हम मिल गए और साथ चले
अलग अलग मंजिल के लिए अपने रास्ते एक किए
sunder....
jaari rahe..

डॉ .अनुराग said...

म सब सुनना चाहेते और मैं बिन बताये समझाना

तुम हक़ जाताना समझाते और मैं जिम्मेदारी निभाना

तुम बस कल में टाला करते और मैं आज मैं चीजे निपटाती

तुम दुसरे कान से बात निकला करते और मैं फिर भी समझाती

तुम सुबह थे तो मैं शाम तुम पूरब थे तो मैं पश्चिम
फिर भी पहेचानते पहेचानते हम एक दुसरे को जान गए


कितने लोगो का सच है ये ओर कितने सरल शब्दों में ....