जाने क्यों होता है ऐसा अक्सर
रह जाता है कल मे उलझकर
न आज नजर आता है और न कल
रह जाता है कल मे उलझकर
न आज नजर आता है और न कल
बीते कल मे ही लिप्त रहता है हर पल.
चाहके भी ये कल नही छूटता
काटों से लिप्त दमन नही सुलझाता
चारो तरफ एक परत सी जम जाती है
जिंदगी भी जैसे सिमट के रह जाती हैं.
अतीत वर्त्तमान सब एक सा लगता है
जो कुछ भी हुआ एक बुरा सपना सा लगता है
जानता है दिमाग लेकिन की ये सचाई है
पर दिमाग ने कब दिल को रहा सुझाई है...
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