एक और शाम जिंदगी की
दूर सबसे, फिर भी अनेको के बीच
न कोई सवाल, न किसी की शिकायतए
एक ऐसी ही शाम जिंदगी की
देर सारी उलझाने मन में लिए
बिन कोई भावना ,बिन कोई सपने बुने
घिरी हुई हूँ अजनबी चेहरों के बीच
एक सफर में , बिन किसी के हमसफ़र हुए
दूर कहीं सागर में सूरज डूब रहा है
किरणों को अपनी बाहों में समेट रहा है
धुंध भी पहाडो पे धीरे धीरे छा रही है
अपने आगोश में उन्हें लिये,चैन की साँस ले रही है
धुंध भी पहाडो पे धीरे धीरे छा रही है
अपने आगोश में उन्हें लिये,चैन की साँस ले रही है
सब कितना शांत लग,कितना शीतल लग रहा है
जैसे कोई सपना हर ऑख में पल रहा है
पर मेरी आँख इतनी नम् क्यों है?
छोटी छोटी खुशियाँ मुझ से ही दूर क्यों है?
काश की ये सफर कभी खत्म न हो
इस राह की मंजिल कहीं न हो
ये वक्त बस अब यही थम जाए
मेरी जिंदगी की हर शाम ऐसी हो जाए...
मेरी जिंदगी की हर शाम ऐसी हो जाए...