Friday, June 27, 2008

एक शाम जिंदगी की..


एक और शाम जिंदगी की
दूर सबसे, फिर भी अनेको के बीच
न कोई सवाल, न किसी की शिकायतए
एक ऐसी ही शाम जिंदगी की

देर सारी उलझाने मन में लिए
बिन कोई भावना ,बिन कोई सपने बुने
घिरी हुई हूँ अजनबी चेहरों के बीच
एक सफर में , बिन किसी के हमसफ़र हुए

दूर कहीं सागर में सूरज डूब रहा है
किरणों को अपनी बाहों में समेट रहा है
धुंध भी पहाडो पे धीरे धीरे छा रही है
अपने आगोश में उन्हें लिये,चैन की साँस ले रही है

सब कितना शांत लग,कितना शीतल लग रहा है
जैसे कोई सपना हर ऑख में पल रहा है
पर मेरी आँख इतनी नम् क्यों है?
छोटी छोटी खुशियाँ मुझ से ही दूर क्यों है?

काश की ये सफर कभी खत्म न हो
इस राह की मंजिल कहीं न हो
ये वक्त बस अब यही थम जाए
मेरी जिंदगी की हर शाम ऐसी हो जाए...

5 comments:

मोहन वशिष्‍ठ said...

काश की ये सफर कभी खत्म न हो
इस राह की मंजिल कहीं न हो
ये वक्त बस अब यही थम जाए
मेरी जिंदगी की हर शाम ऐसी हो जाए...

नेहा जी बहुत खूब बहुत अच्‍छा लगा आपको पढकर लिखो बहुत अच्‍छा लिखते हो आप बधाई हो

डॉ .अनुराग said...

काश की ये सफर कभी खत्म न हो
इस राह की मंजिल कहीं न हो
ये वक्त बस अब यही थम जाए
मेरी जिंदगी की हर शाम ऐसी हो जाए...

khuda aapki kamna puri kare.....achhi kavita hai.

Anonymous said...

well this is the way i always thought nimish is. much more that wat she shows to the world.much deeper that wat she looks and that is been proved by this blog of hers.superb composition..congrats and keep up that work.

Chayya said...

Nimish, i read all ur poems and they all are so touching.

I luved each of them

Keep up the good work

Chayya said...

Nimish, i read all ur poems and they all are so touching.

I luved each of them

Keep up the good work