जाने क्या क्या चाहता है ये मन
न जाने क्यों इतना बेचैन रहता है हर पल
कभी ये पंछी बन उड़ जाना चाहता है
तो कभी ये नदिया बन बह जाना चाहता है
कभी ये फूल बन महकना चाहता है
तो कभी तारा बन चमकना चाहता है
पल पल न जाने कितने सपने सजाता है
और अगले ही पल अपने हाथों से उनका गला घोट देता है
चाहने न चाहने से मेरे क्या होता है
होने या न होने का फ़ैसला तो कोई और करता है
कश्तियाँ तो समुद्र मे कई उतरती है
साहिल तक पहुचने का फ़ैसला तूफ़ान करता है
क्या इसे लकीरों का लिखा कहते है
या किसी का निर्धारित फ़ैसला
ऐसा है तो वो बिछडने वालो को मिलाता क्यों है
खोने वालो को एक बार देता ही क्यों है...
2 comments:
सुन्दर रचना बधाई।
Very nice
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