Friday, June 20, 2008

डूबती कश्ती

न आसमान की चाहत की
और न विस्तृत जमीन की
न सागर की चाहत की
और न असीमित ऐश्वर्य की

छोटी छोटी सी खुशियाँ चाही
पर बड़े बड़े सपने नही देखे
थोड़ा थोड़ा सा जिंदगी में सुकून चाहा
पर और ज्यादा ज्यादा की आरजू नही सजाई

रिश्तो के एक अटूट डोर जरूर चाही
पर नफरत की ये आंधी तो मांगी
सबके चेहरे पर मुस्कुराहट जरूर चाही
पर इल्जामो की जड़ी तो नही मांगी

किसने सोचा था की एक दिन जिंदगी यहाँ ले आएगी
जो राह फूलो की थी, वही अब काटों सी हो जायेगी
जहाँ से सुरु किया था सफर, जिंदगी वही खड़ी नज़र आएगी
मझदार में फ़सी मेरी कश्ती डूबती नज़र आएगी..

1 comment:

समयचक्र said...

bahut badhiya abhivyakti. dhanyawaad.