Sunday, July 13, 2008

मेरे साथ ही क्यों हुआ है ?..

रिश्तों में मेरा जीवन जो बंधा हुआ है
क्यों वो आज जलती चिता सा सुलगा हुआ है
हर अरमान हर ख्वाब जिंदा ही सुलगा हुआ है
सारे सपनो का जैसे हकीक़त से सामना हुआ है

आंखों से सावन यूँ छलका हुआ है
दिल में कोई दर्द जैसे अटका हुआ है
किसी की कुछ बातों से वक्त रुका हुआ है
रोने से कब दर्द किसी का कम हुआ है

आंखों का जैसे नींद से रिश्ता टुटा हुआ है
कोई पुराना घाव आज फिर हरा हुआ है
दिलों से विश्वास जैसे धटा हुआ है
और फिर एक बार मेरा दिल आज तन्हा हुआ है

वक्त ने चाहां और किस्मत ने नचाया हुआ है
दुनिया की बातों का बोझ बड़ा हुआ है
भावनाओ का दम जैसे घुटा हुआ है
मेरे चाहने न चाहने से कब कुछ हुआ है

तोहमतों से दामन मेरा भरा हुआ है
रिश्तों का चेहरा क्यों बिगडा हुआ है
साथ चलते चलते कोई अजनबी हुआ है
कोई तो जवाब दे ये मेरे साथ ही क्यों हुआ है ?

2 comments:

Unknown said...

Beautiful poem Nimish. I knew you write...but that good...Your poems are just wonderful. Keep going.

anjali said...

wat apoem yaar....phida ho gaye hum to aapki shayari par....keep it up.......