Monday, September 8, 2008

काश की कुछ यूं होता

काश की कुछ यूं होता
ये दिल,दिल न होके एक पत्थर होता
किसी दर्द का कोई एहसास न होता
किसी को मुझसे कोई गिला भी न होता

न इसमे कोई चाहत होती
न इसमे किसी की तमन्ना रहती
न किसी से कुछ अपेक्षाए रहती
न किसी को मुझसे शिकायत होती

किसी के साथ चलने की न कोई चाहत होती
किसी को अपना बनने की न जरूरत होती
किसी सपने की इन आंखों में न कोई कल्पना होती
किसी शिकायत की भी फिर न कोई ऊपज होती

भावनाओ को एक पिंजरे में बंद किया जा सकता
हसरतो का दम अपने हाथों से घोटा जा सकता
उम्मीदों के पंख जब मर्ज़ी कतरे जा सकते
खवाब सारे यूं ही खिलोने से तोडे जा सकते

दर्द का फिर न कोई एहसास होता
आंसू भी ख़ुद बा ख़ुद न बहते
थोड़ा और पाने की चाहत न जगती
नए सिरे से नित नई ज़िन्दगी जी जा सकती

पल पल एहसासो का यूं दमन न होता
हर रोज़ ये दिल टुकड़े टुकड़े न होता
फिर सोचती हूँ की काश ये दिल ही न होता
ज़िन्दगी का दर्द फिर कितना कम होता

3 comments:

Chandni* Mehak said...

wah wah mohtrama aap to shayara ho gayi..................hai.......................................

anjali said...

hey nimish kya shayri ki....realy very nice dear.....keep it up bt happy mood ki bhi....

मीत said...

भावनाओ को एक पिंजरे में बंद किया जा सकता
हसरतो का दम अपने हाथों से घोटा जा सकता
उम्मीदों के पंख जब मर्ज़ी कतरे जा सकते
खवाब सारे यूं ही खिलोने से तोडे जा सकते
सही कहा! काश ये दिल ही न होता
ज़िन्दगी का दर्द फिर कितना कम होता
बहुत अच्छा लिखा है...
really touch my heart...
मेरे पास शब्द नहीं हैं तारीफ के लिए...
keep it up