Friday, January 2, 2009

ये बदलाव अछा क्यों नही लगता हैं ..


नया साल नया दिन ..सबकी ढेरो शुभकामनाये ..पर नया क्या हैं ये मुझे अब समझ नहीं आता कि तारीख के आलावा कुछ बदला नही लगता .तारीखे तो रोज़ बदला करती हैं फिर ..


सबके चेहरों पे वही एक झूटी मुस्कराहट और वही एक गहरा नकाब ..कौन क्या चाहता हैं क्या करता हैं कुछ भी समझ पाना मुश्किल लगता हैं..और और आजकल ये दिल क्या चाहता हैं ये भी समझ पाना मुश्किल हो गया हैं॥

सबकी अपनी दुनिया हैं जिसमे किसी और की कोई जगह नही..किसी के पास किसी की बात सुनने का भी वक्त नही है ।
पहले जब भी रात को आसमान की तरफ़ देखा करती..उसके दूर दूर तक बिखरे तारे देखती तो दिल को सुकून मिला करता पर वही आसमान आज खालीपन का एहसास दे जाता हैं..एक ऐसा एहसास जो ख़तम ही नही होता ..
पहले कभी ऐसा नही लगता था..क्या बदला हैं ये आसमान या मेरी नज़र
सब कुछ इतना बदला बदला क्यों हैं और ये बदलाव अछा क्यों नही लगता हैं ..

6 comments:

!!अक्षय-मन!! said...

नेहा जी इतनी निराशा क्यूँ आज दुःख के बादल हैं कल खुला आकाश होगा और हम परिंदे खूब पर को फेलाय खूब उडेंगे फिर कोई गोली फिर कोई निशाना हम पर नही लगेगा....
हवाओं में भी जहर का असर होता है तो हम साँस लेना तो नही छोड़ सकते...
आशा और निराशा यही ज़िन्दगी के मायने बाद देती है निराश होकर कुछ नही मिलता निराशा के सामने इंसान सोच भी नही पाता...
लेकिन आशा की किरण हमेशा उसकी आँखों में चमकती रहती है....
कुछ ग़लत कहा तो माफ़ कीजियेगा...
और हेमेशा खुश रहिएगा....



अक्षय-मन

Nimish Neha said...

nahi aapne bat sahi aur achi kahi ..per kabhi kabhi acha sochne ka sira nahi milta

Samrendra Sharma said...

neha ji u r right no doubt but be positive

मीत said...

बदला है तो बस दीवार पर टंगा पुराना केलेंडर...
बाकि तो सब वही...
में वही आप वही...
क्यों सही कहा न...
उदास नहीं होते...
ओके...
---मीत

Dev said...

पहले जब भी रात को आसमान की तरफ़ देखा करती..उसके दूर दूर तक बिखरे तारे देखती तो दिल को सुकून मिला करता पर वही आसमान आज खालीपन का एहसास दे जाता हैं..एक ऐसा एहसास जो ख़तम ही नही होता ..

पहले कभी ऐसा नही लगता था..क्या बदला हैं ये आसमान या मेरी नज़र
सब कुछ इतना बदला बदला क्यों हैं और ये बदलाव अछा क्यों नही लगता हैं ..


आप के ही साथ नही यह हम सब के साथ घट रहा है बस जरुरत है इसे पहचानने की को फिर से इसे पाने का प्रयाश

neera said...

सब कुछ कितना बदल गया है और कितनी तेज़ी से बदल रहा है कितना विवश हो चुके हैं हम ना इसके अनुरूप अपने को बदल सके, ना पीछे लौट सके...