Wednesday, January 21, 2009

चाहती हूँ ...

एक एक शब्द बनकर तेरे होठों पर छा जाना चाहती हूँ
एक एक गम बनकर तेरी आंखों से कतरा बन बह जाना चाहती हूँ
एक एक खवाब बनकर तेरी पलकों में क़ैद हो जाना चाहती हूँ
एक एक याद बनकर तेरे दिल में बस जाना चाहती हूँ


एक हमसाया बनकर तेरा हमकदम बन जाना चाहतीं हूं
एक खुशी बनकर तेरे नए जीवन की नींव बन जाना चाहती हूं
एक बीता कल बनके ही सही तेरी यादों में बस जाना चाहती हूं
ख़ुद को मिटाकर तेरे मन में बस जाना चाहती हूं
एक एहसास बनकर तेरे आसपास अनंत में लीन हो जाना चाहती हूं







2 comments:

मीत said...

कौन नहीं चाहेगा ऐसा साथी...
बहुत सुंदर रचना...
लिखती रहें...
आपकी भावनाएं बहुत अच्छी हैं...
मीत

Unknown said...

ख़ुद को मिटाकर तेरे मन में बस जाना चाहती हूं
एक एहसास बनकर तेरे आसपास अनंत में लीन हो जाना चाहती हूं


bahut sahi...bahut hi accha likha hai aapne....