जानती हूँ इस बात का एहसास तुम्हे बार बार होता हें
एक बात,वही एक ख्याल जेहन में अब बसता हें
नही मालूम इसमे कितनी सचाई हें
पर ये बात जरूर अब सामने आई है
पास रहके भी अब बहुत दूरी हें
शायद हालत की यही जूरी हें
सालो साल साथ चले थे हम
फिर भी आज दो अजनबी बन गए
कल तक अनगिनत,असीमित बातें थी
और आज सिर्फ़ बीच में खामोशी हें
कोशिशे तो की मैंने शायद ये
की हर बार तुम्हारा साथ दूँ
हर बार बिखरने से पहले संभालू
हर नाराजगी को कैसे भी दूर कर दूँ
दो हाथों में सब कुछ क़ैद करलूं
एक छोटी दुनिया नई कहीं दूर बसालूँ
तेरी मेरी खुशियों के उसमे रंग भर दूँ
पर कोशिशे कोशिश ही बनके रह गई
कभी सचाई इनको न बना पाई
तुमको हर बार नई नई चोट दी
हर बार तुमको मुझसे निराशा ही मिली
शयद मैं ही तुम्हारे रंग में न ढल पाई
जो चाहते थे वो कभी दे ही नही पाई
ऐसा न समझना कभी की मैंने कभी समझा नही
पर परिणाम के बिना इसका शायद इसका कोई अर्थ नही
3 comments:
सच कहा कभी कभी इंसान कितना लाचार हो जाता है... लेकिन कुछ नहीं कर पता और बाद में सब कुछ दूर हो जाता है...
यही ज़िन्दगी है
मीत
कोशिशे तो की मैंने शायद ये
की हर बार तुम्हारा साथ दूँ
हर बार बिखरने से पहले संभालू
हर नाराजगी को कैसे भी दूर कर दूँ
दो हाथों में सब कुछ क़ैद करलूं
lajawab rachna hai...
thoda sa aur jo gaharaa kar dete to.......!!
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