ऐ काश कि ऐसा होता
ये जीवन एक सपना होता
न दुनिया की कोई बेमतलब रस्म होती
न दिलो दिमाग मे नित नई ज़ंग होती
जो चाहता है दिल, इंसान वही करता
अपने जीवन मे प्यार के सारे रंग समेटता
आजाद पंछी की तरह उड़ान भरता
अपनी मंजिल की तरफ़ बस आगे ही बढता
कभी इसको कभी उसको मनाने मे वक्त गवाता नही
करू न करूं इस पशोपेश मे फसता नही
अपने एच्छाओ की बलि यूही चदाता नही
अपनी ज़िंदगी को सज़ा बनाता नही
पर ज़िंदगी सपनो का कोई मेला नही
लें देन का ये एक खेला है
सबकी एक ही शिकायत कि मुझको कुछ मिला नही
पर किसी और के किए का कोई सिला नही
स्वार्थ और यातार्थ मे फर्क मिलता नही
अपनों से ही सामज्स्य बैठा पता नही
क्यों मुझे समझ सके ऐसा मिलता नही
क्यों किसी को मैं अपनी बात समझा पता नही
जो मिलता है तोड़ने की बात करता है
कभी दुनिया का कभी भगवन का वास्ता देता है
पर कैसे अपने ही हाथों से अपने सपने तोड़ दूँ
अपने ज़िन्दाअरमानों की चिता सज़ा दूँ....
Kabhi kabhi kuch aisa hota hai ki aap kuch kehna chahte hai per kisse kahe ye samajh nahi aata, bus aise hi kuch khayalo ko shabd dene ki koshish hai "Meri Duniya"
Sunday, May 25, 2008
Friday, May 23, 2008
एक और इच्छा का दिया जलाकर ..
इंसान नित नए नए सपनो की माला पिरोता है
हर एक मोती के अपनी जगह पहुँच जाने पर
फिर उस धागे मे एक और मोती पिरोता है
और ये किस्सा चलता ही जाता है निरंतर
उसकी साँसे रुक जाने तक
हर रोज़ हाथ उठाकर भगवान से अपने
अपने सपनो की ताबीर मांगता है
सोचता है ये मिल जाए बस अब
सोचता ही है लेकिन ये होता नही
सिर्फ़ इतने पर ही पूर्ण विराम लगता नही
मैं भी तो इन सब का एक हिस्सा हूँ
कोई नया नही , वही पुराना किस्सा हूँ
कल एक मंजिल पाई मैंने
कुछ खुशी से , कुछ थकान से चैन की नीद सोयी भी
लेकिन फिर एक सपना देखा मैंने
मंजिल को मील का पत्थर जाना मैंने
अपनी नींद और अपनी खुशी को फिर खोया भी
फिर पहुँच गई सुबह के दरवाज़े पर
एक और नया सपना लेकर
एक और इच्छा का दिया जलाकर ..
हर एक मोती के अपनी जगह पहुँच जाने पर
फिर उस धागे मे एक और मोती पिरोता है
और ये किस्सा चलता ही जाता है निरंतर
उसकी साँसे रुक जाने तक
हर रोज़ हाथ उठाकर भगवान से अपने
अपने सपनो की ताबीर मांगता है
सोचता है ये मिल जाए बस अब
सोचता ही है लेकिन ये होता नही
सिर्फ़ इतने पर ही पूर्ण विराम लगता नही
मैं भी तो इन सब का एक हिस्सा हूँ
कोई नया नही , वही पुराना किस्सा हूँ
कल एक मंजिल पाई मैंने
कुछ खुशी से , कुछ थकान से चैन की नीद सोयी भी
लेकिन फिर एक सपना देखा मैंने
मंजिल को मील का पत्थर जाना मैंने
अपनी नींद और अपनी खुशी को फिर खोया भी
फिर पहुँच गई सुबह के दरवाज़े पर
एक और नया सपना लेकर
एक और इच्छा का दिया जलाकर ..
Wednesday, May 21, 2008
जाने क्यों..
जाने क्यों होता है ये आजकल मेरे साथ
कभी सबकुछ पास , सबकुछ अच्हा लगता है
अगले ही पल जैसे कुछ नही मेरे साथ
हर अपना भी पराया सा लगता है
दूरियों का एहसास बढ जाता है
अपना अस्तित्व और छोटा हो जाता है
खोयी हुई चीजों का दर्द और बढ जाता है
अकेलेपन का एहसास फिर दिलो-दिमाग पे छा जाता है
कहने सुनने के लिए कोई शब्द नही मिलते है
आंखों मी भी कुछ आसूँ ही रहते है
जाने क्यों रातों को करवटै बदलते रहते है
तन्हाई की चादर लपेटे और सिमटते जाते है
फिर करते है इंतज़ार और सिर्फ़ इंतज़ार
वक्त बीत जाने का नई सुबह आने का
दर्द भी मुस्कराहट के पीछे छुप जाते है
आंसू भी काजल बन आंखों मे सज जाते है..
कभी सबकुछ पास , सबकुछ अच्हा लगता है
अगले ही पल जैसे कुछ नही मेरे साथ
हर अपना भी पराया सा लगता है
दूरियों का एहसास बढ जाता है
अपना अस्तित्व और छोटा हो जाता है
खोयी हुई चीजों का दर्द और बढ जाता है
अकेलेपन का एहसास फिर दिलो-दिमाग पे छा जाता है
कहने सुनने के लिए कोई शब्द नही मिलते है
आंखों मी भी कुछ आसूँ ही रहते है
जाने क्यों रातों को करवटै बदलते रहते है
तन्हाई की चादर लपेटे और सिमटते जाते है
फिर करते है इंतज़ार और सिर्फ़ इंतज़ार
वक्त बीत जाने का नई सुबह आने का
दर्द भी मुस्कराहट के पीछे छुप जाते है
आंसू भी काजल बन आंखों मे सज जाते है..
Thursday, May 15, 2008
समझ नही आता …
मन मे है न जाने कितने तूफ़ान
पर शब्दों मे नही आते
आंखों मे है रहते कितने अरमान
पर ज़िंदगी मे नही समाते.
किसको दोष दूँ मैं
अब तो ये भी समझ नही आता
कितने फ़साने कितनी हकीक़त
अब तो ये भी जाना नही पाते
धोका, घाव, दर्द ये ही मिला मुझको
अपने परायो मे फर्क ही नही मिलता
कौन सी मंजिल, कौन सी दिशा
अब रास्तों मे फर्क करना नही आता
हर रोज़ नई कहानी , हर रोज़ नई उलझन
कब क्या बन जाए , पता नही चलता
कितने दोस्त कितने अपने
कब दुश्मन हो जाए पता नही चलता
किसी चेहरे पे शिकन, किसी चेहरे पे मुस्कराहट
किसकी कितनी गहरी फरक नही आता
किसकी जीत किसकी हार, क्या अंत क्या शुरुआत
कुछ भी अब समझ नही आता …
पर शब्दों मे नही आते
आंखों मे है रहते कितने अरमान
पर ज़िंदगी मे नही समाते.
किसको दोष दूँ मैं
अब तो ये भी समझ नही आता
कितने फ़साने कितनी हकीक़त
अब तो ये भी जाना नही पाते
धोका, घाव, दर्द ये ही मिला मुझको
अपने परायो मे फर्क ही नही मिलता
कौन सी मंजिल, कौन सी दिशा
अब रास्तों मे फर्क करना नही आता
हर रोज़ नई कहानी , हर रोज़ नई उलझन
कब क्या बन जाए , पता नही चलता
कितने दोस्त कितने अपने
कब दुश्मन हो जाए पता नही चलता
किसी चेहरे पे शिकन, किसी चेहरे पे मुस्कराहट
किसकी कितनी गहरी फरक नही आता
किसकी जीत किसकी हार, क्या अंत क्या शुरुआत
कुछ भी अब समझ नही आता …
Wednesday, May 14, 2008
एक कमी सी है......
सबकुछ है मेरे आसपास
फिर भी एक कमी सी है
शीतल है सबकुछ मेरे आसपास
फिर भी रेत मे चिंगारी दबी सी है
न जाने कितने सपने सजे है इन आंखों मे
फिर भी आंखों मे नमी सी है
न जाने कितने चेहरे है मेरे आसपास
फिर भी दिल मे एक कमी सी है
हर तरफ़ जाने पहचाने लोग है
फिर भी किसी की सख्त कमी सी है
हर तरफ़ खुशियों का आलम है
फिर भी चेहरों पर कोई परत जमी सी है
न जाने कितने अपने है मेरे
फिर भी किसी की कमी सी है
न जाने कितनी भावनाये, कितनी पंक्तियाँ
फिर भी इस कविता मी एक कमी सी है..
फिर भी एक कमी सी है
शीतल है सबकुछ मेरे आसपास
फिर भी रेत मे चिंगारी दबी सी है
न जाने कितने सपने सजे है इन आंखों मे
फिर भी आंखों मे नमी सी है
न जाने कितने चेहरे है मेरे आसपास
फिर भी दिल मे एक कमी सी है
हर तरफ़ जाने पहचाने लोग है
फिर भी किसी की सख्त कमी सी है
हर तरफ़ खुशियों का आलम है
फिर भी चेहरों पर कोई परत जमी सी है
न जाने कितने अपने है मेरे
फिर भी किसी की कमी सी है
न जाने कितनी भावनाये, कितनी पंक्तियाँ
फिर भी इस कविता मी एक कमी सी है..
Tuesday, May 13, 2008
बेहतर है…
जब दूरियां बदती जाए दो मुसाफिरों के बीच
तब कुछ देर तक रुक जाना ही बेहतर है
पर जब दूरियां बदती जाए दो दिलो के बीच
तब शायद जुदा हो जाना बेहतर है
जब होतो पर आती बात रुक- रुक जाए
तब हिम्मत कर सब कह देना बेहतर है
पर जब बात चुब जाए दिल मे
तब खामोश रह जाना बेहतर है
जब दो पल खुशी के मिल जाए ज़िंदगी मे
तब चार लोगो मे बाँट लेना बेहतर है
पर जब गमो मे घिर जाए ज़िंदगी
तब तन्हाई मे रोना बेहतर है
जब हसरते हकीक़त मे तब्दील होने लगे
तब ख्वाब देखते रहना बेहतर है
पर जब हसरते किस्से बनकर रह जाए
तब खवाबो को कागजों मे बंद करना बेहतर है
जब साथ हो कोई , जब पास हो कोई
तब हर शाम , हर सुबह बेहतर है
पर जब अकेले हो और दिल भी तन्हा हो
तब अपने अन्दर ही सहारे तलाशना बेहतर है..
तब कुछ देर तक रुक जाना ही बेहतर है
पर जब दूरियां बदती जाए दो दिलो के बीच
तब शायद जुदा हो जाना बेहतर है
जब होतो पर आती बात रुक- रुक जाए
तब हिम्मत कर सब कह देना बेहतर है
पर जब बात चुब जाए दिल मे
तब खामोश रह जाना बेहतर है
जब दो पल खुशी के मिल जाए ज़िंदगी मे
तब चार लोगो मे बाँट लेना बेहतर है
पर जब गमो मे घिर जाए ज़िंदगी
तब तन्हाई मे रोना बेहतर है
जब हसरते हकीक़त मे तब्दील होने लगे
तब ख्वाब देखते रहना बेहतर है
पर जब हसरते किस्से बनकर रह जाए
तब खवाबो को कागजों मे बंद करना बेहतर है
जब साथ हो कोई , जब पास हो कोई
तब हर शाम , हर सुबह बेहतर है
पर जब अकेले हो और दिल भी तन्हा हो
तब अपने अन्दर ही सहारे तलाशना बेहतर है..
Subscribe to:
Posts (Atom)