सबकुछ है मेरे आसपास
फिर भी एक कमी सी है
शीतल है सबकुछ मेरे आसपास
फिर भी रेत मे चिंगारी दबी सी है
न जाने कितने सपने सजे है इन आंखों मे
फिर भी आंखों मे नमी सी है
न जाने कितने चेहरे है मेरे आसपास
फिर भी दिल मे एक कमी सी है
हर तरफ़ जाने पहचाने लोग है
फिर भी किसी की सख्त कमी सी है
हर तरफ़ खुशियों का आलम है
फिर भी चेहरों पर कोई परत जमी सी है
न जाने कितने अपने है मेरे
फिर भी किसी की कमी सी है
न जाने कितनी भावनाये, कितनी पंक्तियाँ
फिर भी इस कविता मी एक कमी सी है..
3 comments:
good job....accha likhti hai aap
Hey Nimish, I like the way you express your thoughts in such a simplified manner. Keep it up, Good work there.
अच्छा रचना है कृपया रोज ऐसी रचनायें लिखा करें।
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