मन मे है न जाने कितने तूफ़ान
पर शब्दों मे नही आते
आंखों मे है रहते कितने अरमान
पर ज़िंदगी मे नही समाते.
किसको दोष दूँ मैं
अब तो ये भी समझ नही आता
कितने फ़साने कितनी हकीक़त
अब तो ये भी जाना नही पाते
धोका, घाव, दर्द ये ही मिला मुझको
अपने परायो मे फर्क ही नही मिलता
कौन सी मंजिल, कौन सी दिशा
अब रास्तों मे फर्क करना नही आता
हर रोज़ नई कहानी , हर रोज़ नई उलझन
कब क्या बन जाए , पता नही चलता
कितने दोस्त कितने अपने
कब दुश्मन हो जाए पता नही चलता
किसी चेहरे पे शिकन, किसी चेहरे पे मुस्कराहट
किसकी कितनी गहरी फरक नही आता
किसकी जीत किसकी हार, क्या अंत क्या शुरुआत
कुछ भी अब समझ नही आता …
2 comments:
मन में थे जितने तूफान शब्दों में आ गए हैं.
too gud sweety...especially the last paragraph...keep them rolling in..u write to gud
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