Tuesday, May 13, 2008

बेहतर है…

जब दूरियां बदती जाए दो मुसाफिरों के बीच
तब कुछ देर तक रुक जाना ही बेहतर है
पर जब दूरियां बदती जाए दो दिलो के बीच
तब शायद जुदा हो जाना बेहतर है

जब होतो पर आती बात रुक- रुक जाए
तब हिम्मत कर सब कह देना बेहतर है
पर जब बात चुब जाए दिल मे
तब खामोश रह जाना बेहतर है

जब दो पल खुशी के मिल जाए ज़िंदगी मे
तब चार लोगो मे बाँट लेना बेहतर है
पर जब गमो मे घिर जाए ज़िंदगी
तब तन्हाई मे रोना बेहतर है

जब हसरते हकीक़त मे तब्दील होने लगे
तब ख्वाब देखते रहना बेहतर है
पर जब हसरते किस्से बनकर रह जाए
तब खवाबो को कागजों मे बंद करना बेहतर है

जब साथ हो कोई , जब पास हो कोई
तब हर शाम , हर सुबह बेहतर है
पर जब अकेले हो और दिल भी तन्हा हो
तब अपने अन्दर ही सहारे तलाशना बेहतर है..

5 comments:

सागर नाहर said...

जब दूरियाँ बढ़ती जाये दो दिलों के बीच
तब शायद जुदा होना ही बेहतर है

बहुत खूब.. बहुत सुन्दर कविता है।

नेहाजी
आपका हिन्दी चिट्ठाजगत में स्वागत है, उम्मीद है आगे से और भी बढ़िया कवितायें पढ़ने मिलेंगी।

एक अनुरोध है कि आप टिप्पणी करते समय जो वर्ड वेरिफिकेशन है उसे हटा देवें।
॥दस्तक॥
गीतों की महफिल
तकनीकी दस्तक

Anonymous said...

जो कहा है
बेहतर कहा है
इससे बेहतर
जहां कहां है.

अविनाश वाचस्‍पति

संदीप said...

जब दूरियां बदती जाए दो मुसाफिरों के बीच
तब कुछ देर तक रुक जाना ही बेहतर है
पर जब दूरियां बदती जाए दो दिलो के बीच
तब शायद जुदा हो जाना बेहतर है


यह पंक्तियां अच्छी लगीं...

महेश कुमार वर्मा : Mahesh Kumar Verma said...

बहुत अच्छा लिखे हैं
धन्यवाद

Manish Kumar said...

जब साथ हो कोई , जब पास हो कोई
तब हर शाम , हर सुबह बेहतर है
पर जब अकेले हो और दिल भी तन्हा हो
तब अपने अन्दर ही सहारे तलाशना बेहतर है..

बहुत खूब...बिल्कुल सही कहा आपने...